प्राचीन समय यानि कि पहले के जमाने में सहवास के प्रति लोगों के विचार आज से ज्यादा खुले थे। सेक्स को लेकर ये झिझक और शर्म भारत में पिछली कुछ सदियों की ही देन हैं। लेकिन सेक्स को लेकर ख्यालात हमेशा से ऐसे नहीं थे। प्राचीन भारत में यौन संबंधों पर खुलकर चर्चा होती थी। लोग इस विषय में बात करने से बिल्कुल कतराते नहीं थे। यही वजह थी कि सेक्स के विषय पर पहला ग्रंथ ‘कामसूत्र’ भारत में दूसरी सदी में ही लिख दिया गया था। लेकिन सेक्स के प्रति अनुशानसन भी कड़ा हुआ करता था।
सम्भोग शब्द दो शब्दों से मिलकर बनता है। सम+भोग । यह स्त्री और पुरुष दोनों का शारीरिक मिलन है।
सहवास के द्वारा दोनों को सम यानि बराबर सुख की प्राप्ति होती है इसलिए इसे शास्त्रों में सम्भोग कहा गया है। सहवास , सेक्स इसके अन्य नाम भी हैं। सम्भोग ( Sexual intercourse) सहवास , मैथुन या सेक्स की उस क्रिया को कहते हैं जिसमे नर का लिंग मादा की योनि में प्रवेश करता हैं। सम्पूर्ण जीव-जगत इसके बिना बिलकुल ही अपूर्ण है। सम्भोग अलग अलग जीवित प्रजातियों के हिसाब से अलग अलग प्रकार से हो सकता हैं।
ग्रंथों में सम्भोग को योनि मैथुन, काम-क्रीड़ा, रति-क्रीड़ा आदि कहा गया है।
सृष्टि में प्राचीन काल से ही सम्भोग का मुख्य काम वंश को आगे चलाना व बच्चे पैदा करना है। जहाँ कई जानवर व पक्षी सिर्फ अपने बच्चे पैदा करने के लिए उपयुक्त मौसम में ही सम्भोग करते हैं , वहीं इंसानों में सम्भोग का कोई समय निश्चित नहीं है। इंसानों में सम्भोग बिना वजह के भी हो सकता हैं। सम्भोग इंसानों में सुख प्राप्ति या प्यार या जज्बातदिखाने का भी एक रूप हैं। सम्भोग अथवा मैथुन से पूर्व की क्रिया, जिसे अंग्रेजी में फ़ोरप्ले कहते हैं, के दौरान हर प्राणी के शरीर से कुछ विशेष प्रकार की गन्ध उत्सर्जित होती है जो विषमलिंगी को मैथुन के लिये अभिप्रेरित व उत्तेजित करती है।
कुछ प्राणियों में यह मौसम के अनुसार भी पाया जाता है। वस्तुत: फ़ोर प्ले से लेकर चरमोत्कर्ष की प्राप्ति तक की सम्पूर्ण प्रक्रिया ही सम्भोग कहलाती है बशर्ते कि लिंग व्यवहार का यह कार्य विषमलिंगियों (स्त्री-पुरुषों) के बीच हो रहा हो।
कई ऐसे प्रकार के सम्भोग भी हैं जिसमें लिंग का उपयोग नर और मादा के बीच नहीं होता जैसे मुख मैथुन अथवा गुदा मैथुन उन्हें मैथुन तो कहा जा सकता है परन्तु सम्भोग कदापि नहीं। उपरोक्त प्रकार के मैथुन अस्वाभाविक अथवा अप्राकृतिक व्यवहार के अन्तर्गत आते हैं या फिर सम्भोग के साधनों के अभाव में उन्हें केवल मनुष्य की स्वाभाविक आत्मतुष्टि का उपाय ही कहा जा सकता है, सम्भोग नहीं।
अगर स्त्री के मासिक धर्म शुरू होने के पहले 4 दिन में कोई पुरुष सेक्स करता है तो वो किसी न किसी रोग का शिकार हो सकता है। प्राचीन नियमों के अनुसार पीरियड में सेक्स नहीं करना चाहिए। पांचवें, छठें, बारहवें, चौदहवें और सोलहवें दिन में सेक्स करना उत्तम माना गया है।
बह्म वैवर्त पुराण के अनुसार दिन के समय और सुबह- शाम पूजा के समय किसी स्त्री और पुरुष का मिलन नहीं होना चाहिए। इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि ग्रहण, सूर्योदय, सूर्यास्त, निधन, श्रावस मास, नक्षत्र, दिन में , भद्रा, श्राद्ध, अमावस्या में भी संभोग न किया जाए। इसे पुण्यों का विनाश करने वाला कर्म भी माना गाया है।
सेक्स के मामले कभी जल्दबाजी नहीं करना चाहिए। लम्बे समय तक सम्भोग की इच्छा हो , तो प्राकुतिक चिकित्सा या आयुर्वेदिक दवाओं का सेवन करना हितकर होता है।
शुद्ध शिलाजीत , तालमखाना , सहस्त्रवीर्या , वंग भस्म , स्वर्ण भस्म , युक्त ओषधियाँ उत्प्रेरक होती हैं जो हमेशा सेक्स की इच्छा बनाये रखती हैं
गर्भ धारण का सही समय
मंथली पीरियड 5 से 7 दिनों तक रहता है। यानी की रक्तस्राव 6 वें दिन बंद हो जाता है। पीरियड के ख़त्म होने के तुरंत बाद के कुछ दिन स्त्री के लिए गर्भधारण करने के लिए सबसे उपयुक्त दिन होते हैं। उदाहरण के लिए अगर रक्तस्राव पीरियड के 6 दिन के बाद बंद हो जाता है तो अगर स्त्री सातवें दिन सेक्स करती है तो उसकी गर्भवती होने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
किसी भी स्त्री को यह अवसर उपलब्ध रहता है अगले 11 दिन तक। यह वह समय है जब अण्डोत्सर्ग की प्रक्रिया प्रारंभ होती है। पीरियड्स के छठे दिन से ही शुक्राणु फैलोपियन ट्यूब में गर्भाधान के लिए इंतजार करते हैं।
अण्डोत्सर्ग के दिन, जो की मानसिक धर्म के शुरू होने के 12 से 14 दिन पहले है, और पीरियड के 5 दिन बाद का समय जो होता है उस दौरान स्त्री की प्रजनन क्षमता बहुत अधिक होती है। गर्भवती होने की संभावना ज्यादा रहती है। पीरियड समाप्त होने के बाद गर्भवती होने के लिए यह आवश्यक है कि स्त्री अपने साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें। इस दौरान असुरक्षित संभोग करने से यह सफाई का ध्यान नहीं रखने से संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है।
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