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लॉक डाउन-के मारे व्यापारी और मध्यम वर्ग का कौन सहारा -

लॉक डाउन-के मारे व्यापारी और मध्यम वर्ग का कौन सहारा

कोरोना वायरस का अंत आज नहीं तो कल होना लगभग तय है। किंतु यह तय है की  लॉक डाउन छोटे व्यापारी एवं मध्यम परिवारों को सर्वाधिक संकट में डालने वाला साबित होगा। मध्यम वर्ग को इसके बुरे परिणामों को भुगतने के लिए तैयार रहना होगा। इस वर्ग का प्रभाव भी बाजारों पर पड़ेगा। जिससे इंकार नहीं किया जा सकता है। मप्र में अमीरों की संख्या कम एवं गरीब-मध्यम वर्ग की सर्वाधिक है। बाजार में भी इन्हीं दो वर्ग की वजह से रौनक रहती है। केंद्र सरकार का झुकाव उद्योगपति एवं गरीब वर्ग के पक्ष में अधिक रहता आया है, किंतु आगामी समय के लिए यह झुकाव उतना ही घातक भी सिद्ध हो सकता है, बेरोजगारी बढ़ेगी। स्कूल की फीस, मकान, वाहनों की किश्तें, अन्य दैनिक  की जरूरतें कैसे पूरी होगी, इसका अंदाज लगाना मुश्किल हो रहा है। अनेक बैंकों ने ग्राहकों को किश्तें भरने के लिए टेलीफोन लगाना शुरू कर दिया है। यदि बाजार कम या धीरे चले तो छोटे-बड़े व्यापारियों की दिक्कतें और अधिक बढ़ेगी।

देश में कोरोना वायरस की महामारी के चलते सर्कार ने विगत्त २१ मार्च से  जो लॉक डाउन  का आदेश जारी किया है , लॉक डाउन कब तक चलता है कुछ कह नहीं सकते । जिस प्रकार से कोरोना संक्रमित के आँकड़े दिन पे दिन भारत देश में बढ़ते जा रहे है इन हालातों को देखकर ऐसा  महसूस हो रहा है की यह लाँकडाउन इतनी जल्दी नहीं समाप्त होगा ।   इस लाँकडाउन के चलते केंद्र सर्कार ने  सभी राज्यों के गरीबों, बेसहारा और किसानों के लिए राशन, कज॔-माफ़ी ओर उनके बैंक के खातों में रुपये भिजवायें है ये बहुत उत्तम कार्य  किया है।

यह सर्व विदित है की पिछले एकाध दशक से मध्यम वर्ग अपना जीवन व्यापन कर्ज लेकर ही चला रहे थे। जिसने बचत की प्रवृत्ति को लगभग तिलांजलि दे दे थी। उसे जितना वेतन मिलता था, उसमें घर खर्च को छोड़कर मासिक किश्तें भरने में चला जाता था। फ्लेट, कार, वाशिंग मशीन, टीवी, फ्रीज आदि घरों में  दैनिक  उपयोग में आने वाली वस्तुएं मासिक किश्तों पर खरीदी जाती रही है। लगभग सभी शहरों की दुकानें मासिक किश्तों एवं शून्य ब्याजदर के प्रलोभन से ही चल रही थी। बदली परिस्थितियों में लॉकडाउन के बाद कितने प्रतिशत व्यक्तियों की नौकरियां सुरक्षित रहेंगी। यह अनुमान लगाना भी कठिन है। जब बाजार में मांग कम होगी, कारोबार घटेगा तब नौकरियों का जाना लगभग  तय है।

किन्तु छोटे व्यापारी, बड़े व्यापारी और मिडिल क्लास वालो को इस कोरोना की महामारी के लाँक डाउन में किसी भी तरह का लाभ नहीं  दिया गया । जबकि इन छोटे व्यापारी, बड़े व्यापारी और मिडिल क्लास वालो पर अपने तथा अपने स्टाफ के परिवारों की भी जवाबदारियां है । सभी के ही खर्च भी चालू ही है । ऐसी स्थिति में इन छोटे व्यापारी, बड़े व्यापारी और मिडिल क्लास वालो का सर्कार  की तरफ उम्मीद भरी निगाहो से देखना जायज ही कहा जायेगा । यदि सर्कार इन छोटे व्यापारी, बड़े व्यापारी और मिडिल क्लास वालो के प्रति कुछ उदारता दिखाती  है तो लॉक डाउन समाप्ति  के पश्चात संभावित बेरोजगारी न के बराबर होगी ।

केंद्र एवं राज्य सरकारें बदली परिस्थितियों में अपनी भूमिका एवं सोच भी बदलेें। सरकार वोटबैंक की खातिर केवल लकीर के फकीर बनकर न चलें। छोटे एवं मध्यम वर्ग के व्यापारी वर्ग की समस्याएं भी मध्यम वर्ग से लगभग मिलती-जुलती है। स्कूल फीस, बिजली के बिल, जीएसटी, आयकर, दो-चार पहिए वाहनों का बीमा, राज्य एवं स्थानीय संस्थाओं के विभिन्न शुल्क के मार को क्यों कम नहीं किया जाता है। उपरोक्त संस्थाओं को होने वाले नुकसान का ब्यौरा लेकर इन्हें भुगतान करना चाहिए, जिससे मध्यम वर्ग, छोटे एवं मध्यम वर्ग व्यापारियों के साथ संबंधित संस्थाओं की आर्थिक सेहत पर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ेगा। मध्यम वर्ग की क्रयशक्ति बरकरार रहने पर बाजारों में रौनक बनी रहेगी। बाजारों को स्थापित रखना भी जरूरी है, अन्यथा हजारों कर्मचारियों, हम्माल, रिक्शा चालक का जीवन दुभर होता नजर आ सकता है ।

और अंत में एक बार पून: केंद्र एवं राज्य सरकारों से निवेदन है की वे अपने यंहा के मध्यम वर्ग, छोटे एवं मध्यम वर्ग व्यापारियों की भी कुछ सुध ले ।

 

लॉकडाउन    मध्यम वर्ग     व्यापारी वर्ग 

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