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देश की सबसे बड़ी गरीब बस्ती में होता है - करोड़ो का उत्पादन

देश की सबसे बड़ी गरीब बस्ती में होता है – करोड़ो का उत्पादन

मुंबई भारत की सबसे बड़ी नगरी है। यह देश की एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक केन्द्र भी है, जो सभी फैक्ट्री रोजगारों का 10%, सभी आयकर संग्रह का 40%, सभी सीमा शुल्क का 6०%, केन्द्रीय राजस्व का 20% व भारत के विदेश व्यापार एवं भारतीय रुपया 40 बिलियन (US$580 मिलियन) निगमित करों से योगदान देती है। मुंबई की पर कैपिटा आय भारतीय रुपया 48, 954 (US$710) है, जो राष्ट्रीय औसत आय की लगभग तीन गुणा है। इसी मुंबई का एक हिस्सा है धारावी ।

धारावी मुंबई का एक क्षेत्र है। यह एक झुग्गी बस्ती इलाका है। यह पश्चिम माहिम और पूर्व सायन के बीच में है और यह 175 हेक्टेयर, या 0.67 वर्ग मील (1.7 वर्ग किमी) के एक क्षेत्र में है। 1986 में, जनसंख्या 530, 225 में अनुमान लगाया गया था, लेकिन वर्तमान में आधुनिक धारावी 6,00,000 से 10 लाख से अधिक लोगों के बीच की आबादी है। धारावी पहले दुनिया की सबसे बड़ी गंदी बस्ती थी, लेकिन 2011 के अनुमान से अब मुंबई में धारावी से बड़ी चार गंदी बस्तियाँ हैं।

अनुमान के अनुसार धारावी इतना बड़ा इलाका है जिसमे में हर साल 3600 करोड़ रुपये से भी अधिक का व्यापार होता है। यहाँ काम करने वाले अधिकतर उद्योग आधिकारिक रूप से पंजीकृत नहीं हैं।

धारावी मुंबई की 535 एकड़ कीमती जमीन पर फैली हुई है। धारावी के एक तरफ अमीरों के बंगले हैं तो दूसरी तरफ गरीब बस्तियों में लोग रहते हैं। एशिया की सबसे बड़ी झोपड़ पट्टी के रूप में भी धारावी मशहूर है। लेकिन शोधकर्ता इससे सहमत नहीं है। 2009 में यूएन की एक रिपोर्ट ने कहा था कि कराची की उरंगी एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि धारावी के अलावा मुंबई में कई और बस्तियां हैं जो धारावी जैसी घनी आबादी वाली है। धारावी में ज्यादातर घर बांस और ईंट पत्थर के बने हुए हैं। पक्की छत की जगह टिन की चादर लगी हुई है। यहाँ छोटे-छोटे कई उद्योग भी चलते हैं।

ब्रिटेन के प्रिंस चार्ल्स भी धारावी क्षेत्र की समुदाय भावना की तारीफ कर चुके हैं। विकास स्वरूप का उपन्यास “क्यू एंड ए” भी धारावी की झुग्गियों पर लिखा गया है। इसी किताब के आधार पर हिट फ़िल्म “स्लमडॉग मिलियनेर” बनी थी। जिसने भारत को पहली बार ऑस्कर दिलाया है।

मुंबई की अर्थव्यवस्था में धारावी एक अहम भूमिका निभाती है। इसे “उत्पादन का बड़ा कारखाना” कहते हैं। झुग्गी पुनर्विकास योजना बनाते वक्त लोगों को इस बस्ती की समस्याओं को ध्यान में रखना होगा। जनसंख्या के आंकड़ों के मुताबिक 90 लाख या मुंबई की 63 फीसदी आबादी झुग्गी बस्तियों में रहती हैं।

आप को जानकर हैरानी होगी कि 22 लाख की आबादी वाली इस स्‍लम एरिया में 22 हजार छोटे और बड़े कारोबारी हैं। ये करोबारी कहीं रजिस्‍टर्ड तो नहीं हैं पर इनका भारत की अर्थव्‍यवस्‍था में छुपा हुआ योगदान है। यहाँ होने वाले कारोबार का सालाना टर्नओर 10 हजार करोड़ से भी अधिक है।

किसी समय गैंगवार तथा अपराध के लिए महशूर धारावी में ज़िन्दगी जीने की कला ने धारावी के मायने बदल दिए हैं। 1882 में ब्रिटिश राज के दौरान शहर की लेबर क्‍लास को रहने के लिए किफायती जगह देने के लिए धारावी को बसाया गया था। अब धारावी की गलियों में कारोबार फल-फूल रहा है। वह भी एक दो हजार करोड़ का नहीं पूरे 10 हजार करोड़ रुपये का। टाटा इंस्‍टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के सर्वे का तो यहीं कहना है। मतलब मोदी का मेक इन इंडिया का दर्शन यंहा की हर गली में कीजिए ।

धारावी स्थित सनाउल्‍लाह कंपाउंड, बनवारी, नौरंग कंपाउंड यहाँ की मशहूर गलियां हैं। अफ्रीका के जंगलों की तरह धूप यहाँ पर भी जमीन नहीं छूती। धारावी में सिर्फ़ रिसाइक्लिंग के कारोबार से 4 लाख लोग अपने घरों की रोजी-रोटी चलाते हैं।

धारावी में काम करने वाले 400 से अधिक कारोबारी प्रसिद्ध ई-कॉमर्स कंपनी स्‍नैपडील में रजिस्‍टर्ड हैं। स्‍नैपडील इसे हाईलाइट भी करता है। 62 साल के एक कारोबारी बताते हैं कि उनकी लेदर वर्कशॉप में 22 लोग काम करते हैं। कुछ व्‍यापारियों का लेदर कारोबार का सालाना टर्नओवर सात करोड़ से भी अधिक है। इस सेल का बड़ा हिस्‍सा स्‍नैपडील से आता है। धारावी के कुल व्‍यापारियों का 30 प्रतशित हिस्‍सा लगभग इतना ही सालाना टर्न ओवर कमाता है। कुछ कारोबारी देश के किसी आर्थिक दस्‍तावेज में शामिल न हों लेकिन यह छुपी हुई अर्थव्‍यवस्‍था लोगों को काम देकर उन्‍हें बेरोजगारी के दंश से बचा रही है।

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