एक अगस्त से करीब सभी राज्यों में रियल एस्टेट रेग्युलेटरी अथॉरिटी (RERA) काम शुरू कर देंगी। नए एक्ट के लागू होने पर बिल्डर किसी प्रोजेक्ट्स की प्री-लॉन्चिंग के नाम पर बुकिंग नहीं कर सकेंगे ।
तकनीकी तौर पर भले ही 1 अगस्त से (बचे हुए राज्यों में) देशभर में रियल एस्टेट रेग्युलेटरी अथॉरिटी कानून लागू हो गया है | शयद खरीदारों को कुछ राहत मिलने जा रही। इसकी वजह यह है कि कानून भले ही लागू हो गया हो, लेकिन इस कानून का पालन कराने के लिए बनने वाली रेग्युलेटरी अथॉरिटी अब तक सिर्फ़ एक ही राज्य में बनी है। बाकी राज्यों और केंद्रशासित क्षेत्रों में RERA 1 अगस्त 2017 से काम शुरू कर दिया है |
इस एक्ट के जरिये रियल एस्टेट सेक्टर को व्यवस्थित तथा उपभोक्ताओं के हितों की दृष्टि से और पारदर्शी तथा जिम्मेदार बनाया जायेगा। अथॉरिटी में उपभोक्ताओं की ओर से आने वाली शिकायतों का तेजी से निराकरण किया जायेगा । उपभोक्ताओं को एसएमएस गेटवे के माध्यम से उनकी शिकायतों के निराकरण की जानकारी उनके मोबाइल पर प्रदान की जायेगी।
इस कानून के अनुसार 500 वर्ग मीटर या उससे ज़्यादा एरिया में बनने वाले हाउसिंग या कॉमर्शियल प्रोजेक्ट को रियल एस्टेट रेग्युलेटरी अथॉरिटी के पास रजिस्टर कराना होगा | 8 अपार्टमेंट वाले समस्त प्रोजेक्ट भी इसके दायरे में आएंगे ।
रेरा लागू होने के 90 दिन के भीतर तक सभी डेवलपर्स को अपने प्रोजेक्ट्स अथॉरिटी के पास रजिस्टर कराने हैं। मिनिस्ट्री ऑफ हाउसिंग एंड अर्बन पावरिटी एलिवेशन के मुताबिक, डेवलपर्स को हर प्रोजेक्ट का सेंक्शन और लेआउट प्लान वेबसाइट के अलावा सभी ऑफिसों और साइट में डिस्प्ले करना होगा। इसके बाद ही डेवलपर्स सेल शुरू कर पाएंगे। यानी कि फ्लैट या प्लॉट की बुकिंग करने से पहले ही बायर्स को प्रोजेक्ट की पूरी जानकारी मिल जाएगी ।
डेवलपर्स को बायर्स के साथ एग्रीमेंट करते वक्त प्रोजेक्ट पूरा होने और पजेशन की तारीख बतानी होगी। पजेशन में देरी होने पर डेवलपर्स को स्टेट बैंक के रेट ऑफ इंटरेस्ट से 2% ज़्यादा ब्याज देना होगा। अगर ऐसा नहीं किया तो बायर्स की शिकायत पर डेवलपर्स को 3 साल तक की सजा हो सकती है।
आमतौर पर डेवलपर्स एक प्रोजेक्ट के नाम पर बायर्स से पैसा लेकर इसे दूसरे प्रोजेक्ट में लगा देते हैं। इसके चलते दोनों प्रोजेक्ट लटक जाते हैं। अब ऐसा नहीं होगा। डेवलपर्स बायर्स से लिया 70% पैसा अलग अकाउंट में जमा कराएंगे। इसे किसी दूसरे प्रोजेक्ट पर खर्च नहीं किया जा सकेगा।
डेवलपर्स को ऑनगोइंग प्रोजेक्ट्स का भी रजिस्ट्रेशन कराना होगा, जबकि कई राज्यों में ऐसे प्रोजेक्ट्स को छूट दी गई है। यहाँ के लाखों होम बायर्स को रेरा का कोई फायदा हजारों बिल्डर्स ने काम रोका हुआ है और अगर ये प्रोजेक्ट रेरा के अंडर नहीं आए तो घर मिलने का बहुत से बायर्स का सपना पूरा होने की उम्मीद कम हैं ।
आमतौर पर घर मिलने पर बायर्स खुद को छला हुआ महसूस करते हैं, जब आपको पता चलता है कि फ्लैट का साइज उम्मीद से कम है। दरअसल, बुकिंग के वक्त बिल्डर्स आपको फ्लैट का जो साइज बताते हैं, वह सुपर एरिया होता है। यानी कि इसमें आपके घर के अलावा बालकनी सीढियाँ इत्यादि | जैसे कॉमन एरिया को भी शामिल कर दिखाया जाता है। अब एक्ट में साफ कहा गया है कि अब फ्लैट कारपेट एरिया पर ही बेचा जाएगा, यानी कि आपने जितने साइज का पैसा दिया है, उतना ही पैसा वसूला जायेगा |
बायर्स के पास बिल्डर्स की कोई भी शिकायत अथॉरिटी से करने का अधिकार होगा। 60 दिन में अथॉरिटी फैसला सुना देगी। अथॉरिटी न केवल प्राइवेट बिल्डर्स की शिकायत सुनेगी घर बनाने वाली सरकारी एजेंसियों के खिलाफ शिकायत पर भी सुनवाई करेगी।