इस दर्द भरी दुनिया में ऐसी कई घटनाएँ हुई हैं, जहां लोग मौत के मुंह से तो बाहर आ गए है लेकिन ऐसे हादसों को अंत तक भुला न पाएं। एक ऐसी ही एक अद्भुत किन्तु सत्य (Wonderful but True) घटना 13 अक्टूबर 1972 को हुई | उरुग्वे के ओल्ड क्रिश्चियन क्लब की रग्बी टीम चिली के सैंटियागो में मैच खेलने जा रही थी, परन्तु इसी दौरान मौसम खराब होने की वजह से हवाई जहाज चिली की बॉर्डर से लगभग 14 किमी दूर अर्जेटीना के मेंदोजा प्रोविंस में क्रैश हो गया था। उड़ान भरने के कुछ देर बाद ही मौसम खराब होने लगा और पायलट को कुछ नजर न आने की वजह से प्लेन क्रैश हो गया। उस प्लेन में लगभग 45 लोग सवार थे, जिनमें से 12 की मौत प्लने क्रैश के दौरान तत्काल ही हो गई थी।
अन्य 17 के लगभग लोग घायल हो गए थे, जिन्होंने बाद में दम तोड़ दिया था। हालांकि, इस अद्भुत किन्तु सत्य (Wonderful but True) हादसे में जो लोग बचे उन्हे जिंदा रहने के लिए मौत से ज़्यादा बुरा वक्त देखना पड़ा। बचे हुए लोगो ने जान बचाने के लिए खाने की चीजों को छोटे-छोटे हिस्सों में बाट लिया ताकि वह ज़्यादा दिन तक चल सके | पानी कि कमी को दूर करने के लिए उन्होंने प्लेन में से एक ऐसे मेटल के टुकड़े को निकाला जो कि धूप में बहुत जल्दी गर्म हो सके | फिर उस पर बर्फ रख कर उसे पिघला कर पानी इकठ्ठा करने लगे। मुसीबत तब शुरु हुई जब खाना खत्म हो गया और कोई चारा न होने की वजह से इन लोगों ने अपने मरे हुवे साथियों की लाश के टुकड़े करके उन्हें खाना शुरू कर दिया। हादसे में बचे डॉ. रोबटरे कानेसा ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था, ये अद्भुत किन्तु सत्य (Wonderful but True) है की मुझे जिंदा रहने के लिए अपने ही दोस्तों का मांस खाना पड़ा था।
हादसे के पीड़ितों को लगभग 30 डिग्री सेल्सियस में 72 दिन गुजारने पड़े। देखते ही देखते 60 दिन बीत गए थे दुनिया की नज़र में मर चुके इन लोगों को बाहरी दुनिया से मदद की कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही थी। ऐसे में दो खिलाड़ियों नैन्डो पैरेडो और रॉबटरे केनेसा ने सोचा पड़े-पड़े मरने से अच्छा है कि मदद कि तलाश पर निकलना सही समझा। शारीरिक रूप से कमजोर हो चुके दोनो खिलाड़ी मदद के लिए बफऱ् पर ट्रैकिंग करनी शुरु की आखिर में दोनो एंडीज पर्वत को हराते हुए चिली के कुछ आबादी वाले क्षेत्र तक पहुंच गए जहां दोनों ने रेस्क्यू टीम को अपने साथियों की लोकेशन बताई | इसके चलते हादसे में बाकी बचे 16 लोगों को 23 दिसम्बर 1972 में बचाया जा सका।
इस भयावह घटना पर पियर्स पॉल रीड ने 1974 में एक किताब ‘अलाइव (Alive)’ लिखी थी, जिस पर 1993 में फ्रेंक मार्शल ने फ़िल्म भी बनाई थी।