एल. इ. डी. के युग में ट्यूब लाइट नहीं चली

ईद के समय रिलीज हुई सलमान खान की फिल्म ट्यूबलाइट स्क्रिप्ट और कहानी के लिहाज से क्रिटिक्स की बुराइयां झेल रही है। हालांकि बावजूद इसके फिल्म का अब तक का कुल कलेक्शन 64 करोड़ 77 लाख रुपए पहुंच गया है। कहानी की बात करें तो कबीर खान की इस फिल्म की बात करें तो इसमें उनके किरदार का नाम लक्ष्मण सिंह बिष्ट है। जिसे पड़ोस के बच्चे ट्यूबलाइट कहकर बुलाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि उसे देर से चीजें समझ आती है। जैसे ट्यूबलाइट जलने में टाइम लगाती है। लेकिन एक बार जलने के बाद वो रौशन रहती है। ईद पर रिलीज होने वाली ज्यादातर फिल्मों के साथ एक दिलचस्प तथ्य यह भी रहा है कि ईद पर रिलीज होने वाली तकरीबन सभी फिल्में हिट साबित हुई हैं। ट्यूबलाइट को छोड़कर ।

बात अगर डायरेक्शन की करें, तो कबीर खान की फिल्म पर कतई पकड़ नजर नहीं आती। एक अच्छी कहानी पर बनी फिल्म प्लॉट की गड़बड़ी के चलते दर्शकों को निराश करती है। खुद पर यकीन करने के फंडे के चलते कबीर ने फिल्म में सलमान से तमाम अटपटी चीजें कराई हैं। फिल्म का फर्स्ट हाफ कमजोर है, तो सेकंड हाफ में चीजें और भी खराब हो जाती हैं। कईं सीन तो बेहद अटपटे हैं। मसलन किसी सीन में सलमान शर्ट-पैंट-स्वेटर और जूते पहनकर नदी में छलांग लगाते नजर आते हैं वहीं एक दूसरे किसी सीन में सोहेल खान को गोली लग जाती है, तो वह अपने साथी को उसके फटे हुए जूतों की बजाय अपने जूते पहनने को कहता है। उसका साथी सोहेल के जूते पहनता है, इतने में उसे भी गोली लग जाती है, लेकिन जब भारतीय सेना के सिपाही उनके पास पहुंचते हैं, तो वहां उन्हें दोनों के पैरों में जूते नजर आते हैं।

सलमान खान के प्रंशक उन्हें दबंग अंदाज वाले रोल्स में देखना पसंद करते हैं, लेकिन इस फिल्म में वह एक निरीह आदमी के रोल में नजर आते हैं, जो कि पूरी फिल्म में दूसरों के सामने रोता-गिड़गिड़ाता ही रहता है। सलमान जितनी बार इमोशनल सीन करते हैं, उतनी बार फैंस हंसते नजर आते हैं। खासकर सेना की भर्ती वाले सीन में और पूरी फिल्म के दौरान अपनी जिप बंद करने के दौरान सलमान फैंस का खूब मनोरंजन करते हैं वहीं रोने के सींस में कई बार सलमान ओवर ऐक्टिंग करते नजर आते हैं।

यह फिल्‍म वैसी नहीं है जिसमें आपको अपने दोस्‍तों के साथ सिनेमाघरों में जाकर तालियां बजाने और नाचने का मौका मिलेगा | यह एक भावनात्‍मक फिल्‍म है. एक पत्‍थर दिल इंसान के भी इस फिल्‍म में आंसू आ सकते हैं | तो यह एक ऐसी भावनात्‍मक फिल्‍म है जिसमें आप अपने माता-पिता और दादा-दादी के साथ जाएंगे |

कहने का तात्पर्य  यह है की यह ट्यूबलाइट नाम के अनुरूप शुरू से अंत तक लपक-झपक करती है। आप कहते रहते हैं, जल जा… जल जा… जल जा… परंतु वह पूरी तरह रोशन नहीं होती। वैसे भी एल. इ. डी. का जमाना  है  ट्यूब लाइट से बात बनती नहीं ।

हम इस फिल्म को पांच में से दो रेटिंग देते है | हम पाठको को भी निराश नहीं करेंगे नीचे कमेंट्स बॉक्स है , शुरू हो जाइये यदि आपने गलती से फिल्म देख ली हो तो आप अपनी रेटिंग तथा इस इस फिल्म को देखने के अपने अनुभव को सभी से शेयर करने के लिए |

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