एक महीने में चंद्रमा जिन जिन 27 नक्षत्रों में भ्रमण करता है, उनमें ये सबसे पहला है आश्विन ।. आश्विन नक्षत्र की पूर्णिमा आरोग्य देती है. केवल और केवल शरद पूर्णिमा को ही चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से युक्त संपूर्ण और पृथ्वी के सबसे नजदीक भी होता है.।
वैसे तो प्र्त्येक पूर्णिमा का अपना महत्व होता है, लेकिन बात जब शरद पूर्णिमा की होती है तो इस तिथि को सनातन धर्म में बहुत ही खास माना जाता है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इस साल शरद पूर्णिमा 19 अक्टूबर 2021 यानि मंगलवार के दिन है। इस दिन मंदिरों में और लोग अपने-अपने घरों में मां लक्ष्मी की विशेष पूजा अर्चना करते हैं और उनसे अपनी मनोकामना भी करते है हैं। हिन्दू धर्म में कहा जाता है कि अगर इस दिन पूरे तन-मन से मां लक्ष्मी की पूजा की जाए, तो हर इच्छा जरूर पूरी होती है। लेकिन क्या बहुत से लोग इस दिन के महत्व के बारे में नहीं जानते हैं । तो चलिए हम आपको शरद पूर्णिमा के महत्त्व के बारे में बताते हैं।
एक समय द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था , तब मां लक्ष्मी राधा रूप में अवतरित हुईं। भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी की अद्भुत रासलीला का नव आरंभ भी शरद पूर्णिमा के दिन ही माना जाता है।
शैव भक्तों के लिए भी शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कुमार कार्तिकेय का जन्म भी शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसी कारण से इसे कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है।
पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में इस दिन कुमारी कन्याएं प्रातः काल स्नान करके सूर्य और चन्द्रमा की पूजा करती हैं। माना जाता है कि इससे उन्हें सुयोग्य पति की प्राप्त होती है।
अनादिकाल से चली आ रही प्रथा का आज फिर निर्वाह किया जाएगा। स्वास्थ्य और अमृत्व की चाह में एक बार फिर खीर आदि को शरद के चंद्र की चांदनी में रखा जाएगा और प्रसाद स्वरूप इसका सेवन किया जाएगा।
आयुर्वेदाचार्य हर साल इस पूर्णिमा का इंतजार करते हैं. क्यों की जीवनदायिनी रोग नाशक जड़ी-बूटियों को शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखते हैं । और उसके बाद अमृत से नहाई इन जड़ी-बूटियों से जब दवा बनाई जाती है तो वह रोगी के ऊपर तुंरत ही असर करती है । चंद्रमा को वेद-पुराणों में मन के समान माना गया है. वायु पुराण में चंद्रमा को जल का कारक भी बताया गया है. प्राचीन ग्रंथों में चंद्रमा को औषधीश यानी औषधियों का स्वामी भी कहा गया है।
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार पूर्णिमा की शीतल चांदनी में रखी खीर खाने से मनुष्य के शरीर के सभी रोग दूर होते हैं. ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन और भाद्रपद मास में मानव शरीर में पित्त का जो संचय हो जाता है । शरद पूर्णिमा की शीतल धवल चांदनी में रखी खीर खाने से सारा पित्त बाहर निकलता है । लेकिन इस खीर को एक विशेष विधि से बनाया जाता है. पूरी रात शरद पूर्णिमा के चांद की चांदनी में रखने के बाद सुबह खाली पेट यह खीर खाने से सभी रोग दूर होते हैं, वर्ष भर शरीर निरोगी होता है.।
ऐसा माना जाता है की पूर्णिमा के दिन जब वृन्दावन में भगवान कृष्ण महारास रचा रहे थे तो चंद्रमा आसमान से सब देख रहा था और वह इतना आनन्द विभोर हुआ कि उसने अपनी पूरी शीतलता के साथ पृथ्वी पर अमृत की वर्षा आरंभ कर दी।
धन प्राप्ति के लिए
शरद पूर्णिमा पर रात्रि को माता लक्ष्मी के सामने घी का दीपक जलाकर उन्हें श्रद्धा पूर्वक गुलाब के फूलों की माला पहनाएं।
मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए उन्हें सफेद मिठाई का भोग अवश्य लगाएं।
शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र की 11 माला का जाप करें-
ॐ ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद महालक्ष्मये नमः
शरद पूर्णिमा कुमार पूर्णिमा