हिन्दूधर्म में किसी भी शुभकार्य को शुरु करने के पहले Shri Ganesh JI की पूजा करना ज़रूरी माना गया है। चाहे वह किसी भी तरह का कार्य हो। इन्हें कई नामों सें पुकारा जाता है जैसे कि विघ्नहर्ता, गजानन, एकदंत, कपिल, गजकर्ण, लम्बोदर, सुमुख आदि नामों से जाना जाता है। इन नामों के स्मरण करनें मात्र से मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते है। मनुष्य के घर में सुख-शांति आ जाती है। Shri Ganesh JI को प्रसन्न करना बहुत ही आसान है, लेकिन इसके लिए आपको सच्चें मन से गणेश जी की श्रृद्धा और उनके प्रिय मोदक उन्हें भोग लगाए | हमारें मन में एक बार यह बात ज़रूर आती है कि आखिर सबसें पहलें Shri Ganesh JI की ही पूजा क्यों की जाती है। किसी अन्य देवी-देवताओं की क्यों नहीं की जाती है। अपनी खबर में बताएगें कि क्यों गणपति सर्नप्रथम पूजें जातें है।
पुराणों में प्रचलित एक प्राचीन कथा के अनुसार एक बार सभी देवों की सभा हुई उसमे यही प्रश्न उठा की सबसे सर्वश्रेष्ठ देवता कौन है, सभी ने अपने-अपने मत दिए किन्तु अंत तक निर्णय नहीं हो पाया। अंत में यह निर्णय लिया गया की जो भी तीनो लोको की परिक्रमा करके इस स्थान पर सबसे पहले पहुँचेगा वह ही पूजनीय एवम सर्वश्रेष्ठ होगा। इतना सुनते ही सभी देवगण अपने-अपने तेज़ वाहनों पर सवार हो कर चल दिए परन्तु भारी शरीर वाले Shri Ganesh JI अपने वाहन मूषक के साथ वहाँ पर रुके रहे। भगवान गणेश ने अपना साहस और बुद्धि को नहीं गवाया और तुरन्त उस स्थान पर गए जहाँ पर उनके माता और पिता (शिव और पार्वती) विराजमान थे। भगवान गणेश ने अपने माता पिता की तीन बार परिक्रमा की और उसी सभा में जा कर सबसे पहले सभापति के पद पर बैठ गए | फिर तीनो लोको की परिक्रमा करके कार्तिकेय जी मयूर पर सवार हो कर सभा में पहुंचे, सभापति के पद पर आसीन Shri Ganesh JI को लड्डू खाते देख उन को बड़ा क्रोध आया और क्रोधवश उन्होंने Shri Ganesh JI पर अपने मुगदर से उनके दाँत प्रहार किया। इस प्रहार से Shri Ganesh JI का एक दाँत टूट गया, तभी से गणेश जी का नाम एकदंत भी पड़ गया। और Shri Ganesh JI प्रथम पूज्य बन गए |
भारत में गणेशोत्सव कब से मनाया जा रहा है |
अंग्रेजो के शासन काल में युवाओं में अपने धर्म के प्रति नकारात्मकता और अंग्रेज़ी आचार-विचार के प्रति आकर्षण बढ़ने लगा था और हिंदू अपने धर्म के प्रति उदासी होने लगे थे। उस समय महान क्रांतिकारी व जननेता लोकमान्य तिलक ने सोचा कि हिंदू धर्म को कैसे संगठित किया जाए? लोकमान्य तिलक ने विचार किया कि Shri Ganesh JI ही एकमात्र ऐसे देवता हैं जो समाज के सभी स्तरों में पूजनीय हैं। गणेशोत्सव एक धार्मिक उत्सव होने के कारण अंग्रेज शासक भी इसमें दखल नहीं दे सकेंगे।
इसी विचार के साथ लोकमान्य तिलक ने पूना में सन् 1893 में सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरूआत की। तिलक ने गणेशोत्सव को आजादी की लड़ाई के लिए एक प्रभावशाली साधन बनाया। इस सम्बंध में लोकमान्य तिलक ने पूना में एक सभा आयोजित की। जिसमें ये तय किया गया कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से भद्रपद शुक्ल चतुर्दशी (अनंत चतुर्दशी) तक गणेश उत्सव मनाया जाए | 10 दिनों के इस उत्सव में हिंदुओं को एकजुट करने व देश को आजाद करने के लिए विभिन्न योजनाओं पर भी विचार किया जाता था।
गणेशोत्सव (गणेश + उत्सव) हिन्दुओं का एक उत्सव है। वैसे तो यह कमोबेश पूरे भारत में मनाया जाता है, किन्तु महाराष्ट्र का गणेशोत्सव विशेष रूप से प्रसिद्ध है। महाराष्ट्र में भी पुणे और मुंबई का गणेशोत्सव जगत्प्रसिद्ध है। यह उत्सव, हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की चतुर्थी से चतुर्दशी से तक दस दिनों तक चलता है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी भी कहते हैं।
Shri Ganesh JI की प्रतिष्ठा सम्पूर्ण भारत में समान रूप में व्याप्त है। महाराष्ट्र इसे मंगलकारी देवता के रूप में व मंगलपूर्ति के नाम से पूजता है। दक्षिण भारत में इनकी विशेष लोकप्रियता ‘कला शिरोमणि’ के रूप में है। मैसूर तथा तंजौर के मंदिरों में गणेश की नृत्य-मुद्रा में अनेक मनमोहक प्रतिमाएं हैं।
गणेश हिन्दुओं के आदि आराध्य देव है। हिन्दू धर्म में गणेशजी को एक विशष्टि स्थान प्राप्त है। कोई भी धार्मिक उत्सव हो, यज्ञ, पूजन इत्यादि सत्कर्म हो या फिर विवाहोत्सव हो, निर्विध्न कार्य सम्पन्न हो इसलिए शुभ के रूप में गणेश की पूजा सबसे पहले की जाती है। महाराष्ट्र में सात वाहन, राष्ट्रकूट, चालुक्य आदि राजाओं ने गणेशोत्सव की प्रथा चलायी थी। छत्रपति शिवाजी महाराज भी गणेश की उपासना करते थे।
जहां तक संभव हो सकें मिटटी के गणेश की मूर्ति की स्थापना करें ताकि विसर्जन के पश्चात आपकी आस्था को ठेस नहीं पहुंचे | होता यह है की प्लास्टर ऑफ़ पेरिस एक तो जलाशय या नदी के पानी को भी दूषित करता है , दूसरा सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है की प्लास्टर ऑफ़ पेरिस आधी गली मूर्तियां किनारों पर आ जाती है | जिससे हमारी आस्था आहत होती है | मिटटी की मूर्तियां तत्काल पानी में गल जाती है |