शुभ समय के बारे में तो सभी जानते है लेकिन अशुभ समय के बारे में सभी को पता नहीं होता। लेकिन इस अशुभ समय का सभी के जीवन पर समान प्रभाव पड़ता है। ऐसा ही समय फिर प्रारंभ होने वाला है जब ग्रहों की चाल बदलने वाली है और वह समय है पुरुषोत्तम मास (Purushottam Maas) या अधिकमास (Adhik Maas)।
16 मई 2018 बुधवार से ज्येष्ठ महीने में अधिकमास जिसे आम भाषा में मलमास कहा जाता है प्रारंभ हो जाएगा। जिसके बाद सभी मांगलिक और शुभकार्य पूरे मलमास के लिए स्थगित कर दिए जाएंगे। मलमास के महीने को पुरुषोत्तम का महीना भी कहा जाता है इसलिए इसमें सभी को उत्तम से उत्तम धार्मिक कार्य करने चाहिए ।
हमारे भारतीय पंचांग की (खगोलीय गणना) के अनुसार प्रत्येक तीसरे वर्ष एक अधिक मास होता है। यह सौर और चंद्र मास को एक समान लाने की गणितीय प्रक्रिया है। शास्त्रों के अनुसार पुरुषोत्तम मास (Purushottam Maas) में किए गए जप, तप, दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। सूर्य की बारह संक्रांति होती हैं और इसी आधार पर हमारे चंद्र पर आधारित 12 माह होते हैं। हर तीन वर्ष के अंतराल पर अधिक मास या मलमास आता है।
शास्त्रों के अनुसार जिस माह में सूर्य संक्रांति नहीं होती वह अधिक मास होता है। इसी प्रकार जिस माह में दो सूर्य संक्रांति होती है वह क्षय मास कहलाता है।
हिन्दू धर्म में इन दोनों ही मासों में मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते है, परंतु धर्म-कर्म के कार्य पुण्य फलदायी होते हैं। सौर वर्ष 365.2422 दिन का होता है जबकि चंद्र वर्ष 354.327 दिन का होता है। इस तरह दोनों के कैलेंडर वर्ष में 10.87 दिन का फ़र्क़ आ जाता है और तीन वर्ष में यह अंतर 1 माह का हो जाता है। इस असमानता को दूर करने के लिए अधिक मास एवं क्षय मास का नियम बनाया गया है।
इस माह में व्रत, दान, पूजा, हवन, ध्यान करने से पाप कर्म समाप्त हो जाते हैं और किए गए पुण्यों का फल कई गुणा प्राप्त होता है। देवी भागवत पुराण के अनुसार मल मास में किए गये सभी शुभ कर्मो का अनंत गुना फल प्राप्त होता है। इस माह में भागवत कथा श्रवण की भी विशेष महत्ता है। पुरुषोत्तम मास में तीर्थ स्थलों पर स्नान का भी महत्त्व है।
अधिक मास अपने स्वामी के ना होने पर विष्णुलोक पहुंचे और भगवान श्रीहरि से अनुरोध किया कि सभी माह अपने स्वामियों के आधिपत्य में हैं और उनसे प्राप्त अधिकारों के कारण वे स्वतंत्र एवं निर्भय रहते हैं। एक मैं ही भाग्यहीन हूँ जिसका कोई स्वामी नहीं है, अत: हे प्रभु मुझे इस पीड़ा से मुक्ति दिलाइए | अधिक मास की प्रार्थना को सुनकर श्री हरि ने कहा ‘हे मलमास मेरे अंदर जितने भी सद्गुण हैं वह मैं तुम्हें प्रदान कर रहा हूँ और मेरा विख्यात नाम’ पुरुषोत्तम’मैं तुम्हें दे रहा हूँ और तुम्हारा मैं ही स्वामी हूँ।’ तभी से मलमास का नाम पुरुषोत्तम मास (Purushottam Maas) हो गया और भगवान श्री हरि की कृपा से ही इस मास में भगवान का कीर्तन, भजन, दान-पुण्य करने वाले मृत्यु के पश्चात श्री हरि धाम को प्राप्त होते हैं।
पवित्र स्थान पर अक्षत से अष्ट दल बनाकर जल का कलश स्थापित करना चाहिए | भगवान श्री राधा-कृष्ण की प्रतिमा रखकर पोडरा विधि से पूजन करें और कथा श्रवण की जाए. संध्या समय दीपदान करना चाहिए | माह के अंत में धातु के पात्र में 30 की संख्या में मिष्ठान्न रखकर दान किया जाए.
पुरुषोत्तम मास (Purushottam Maas) में भक्त भाँति-भाँति का दान करके पुण्य फल प्राप्त करते हैं। मंदिरों में कथा-पुराण के आयोजन किए जाते हैं। दिवंगतों की शांति और कल्याण के लिए पूरे माह जल सेवा करने का संकल्प लिया जाता है। मिट्टी के कलश में जल भर कर दान किया जाता है। खरबूजा, आम, तरबूज सहित अन्य मौसमी फलों का दान करना चाहिए. माह में स्नान कर विधिपूर्वक पूजन-अर्चन कथा श्रवण करना चाहिए ।