भारत दुनिया का सबसे युवा देश माना जाता है | 2011 की जनगणना के अनुसार देश की 54% आबादी युवा है। हमेशा किसी भी देश को खड़ा करने में उस देश के युवाओं का अहम योगदान होता है। हालाँकि Indian youth दुनिया में किसी से कम नहीं है लेकिन फिर भी कुछ कारण ज़रूर है जिस वजह से युवा जनसंख्या का ठीक से इस्तेमाल नहीं किया गया है। जिसके कई आर्थिक, सामाजिक कारण हो सकते है जो युवाओं में अवसाद और कुंठा की भावना को पैदा करते है। यहाँ पर हम कुछ कारणों पर प्रकाश डालने का प्रयास कर रहे है। कैरियर की टेंशन-आज के Indian youth की सबसे आम समस्या है कैरियर। उनको ऐसे विकल्पों की तलाश रहती है जो उनके और परिवार के सपनो को पूरा कर सके | लेकिन इस आर्थिक युग में हर बड़े कैरियर का रास्ता भी खूब सारे धन के ढेर से होकर गुजरता है। इसलिए हर Indian youth बेहतर कैरियर के सपने देखता ही रह जाता है क्योंकि आर्थिक समस्या हर माध्यम वर्गीय युवा के साथ है।
जवानी अज्ञात कुछ भी नहीं रखना चाहती। इसीलिए कई बार जीवन की कई ढंकी चीजों पर भी टूट पड़ती है। शास्त्रों में तो लिखा है कि Youth पीढ़ी को वैसा ब्रह्म बहुत अच्छा लगता है, जिसका चिंतन कभी किसी ने न किया हो। जिसका चिंतन हो चुका हो, उसका आकर्षण हमेश के लिए समाप्त हो जाता है । इसीलिए जवान लोग नया-नया ढूंढ़ने में लग जाते हैं। आज की खोज Make in India यह भी एक नई खोज है। कहते हैं ब्रह्म को जानना हो तो नई दृष्टि विज्ञान की चाहिए और उसको जीना हो तो नई दृष्टि संस्कार की चाहिए | युवा पीढ़ी यह खोजने निकलेगी तो सहारा विज्ञान का लेना पड़ेगा लेकिन, जिसे खोजने निकले हैं उसके भीतर कुछ ऐसा है, जिसके लिए विज्ञान के साथ संस्कार और संस्कृति की भी ज़रूरत पड़ेगी। उमंग और उत्साह जवानी के लक्षण हैं लेकिन, इसे बनाए रखने के लिए जवानी भटककर ग़लत रास्ते पर चली जाती है। उमंग के लिए जीवन को विलास में न बदला जाए | युवा यदि संस्कार से जुड़ते हैं तो एक बात बहुत अच्छे से समझ में आएगी कि वे युवा हैं इसलिए एक पीढ़ी बाद आए हैं। तो जो पीढ़ी गुजरी उससे कुछ नया करके जाएं और जो नई पीढ़ी आएगी उसके लिए और कुछ नया छोड़कर जाएं लेकिन, कभी भी मूल्य न छूट जाएं। नए को खोजिए, नवीनता सांस में उतारिए लेकिन, ऐसा न हो कि वह भोग-विलास लेकर आ जाए. ऐसा हुआ तो वह नया बहुत महंगा पड़ जाएगा।
युवा अवस्था में अकेलापन, एक बेवजह की ऊब और खुद से रूबरू होने की कोशिश! कुछ इसी जद्दोजहद को बयां करती हैं ये पंक्तियां। वह एक अच्छी जॉब करता है, अच्छी सैलरी भी है, एक अच्छी-सी गर्लफ्रेंड भी है, सबसे मिलता है, उसके बहुत से दोस्त हैं फेसबुक पर, सैकड़ों लाइक्स आते हैं, अच्छे-खासे फॉलोवर्स भी हैं। फिर भी वह अक्सर खुद को अकेला महसूस करता है। अब उसे सबकुछ अनजाना-सा लगता है, वह कभी फेक फेसबुक आई डी बना कर अनजाने लोगों से देर रात तक बात करता है तो कभी सिगरेट पीते-पीते कहीं दूर निकल जाता है। अचानक उसे ये सब अनजाने लोग अच्छे लगते हैं, पर क्यों?
ज़िंदगी की भागमभाग में, जहां हमें स्कूल से लेकर कॉलेज तक बस खुद को बना कर रखना होता है। सब कुछ तय होता है, कब नहाना है, कौन-सी युनिफ़ॉर्म कब पहननी है, किस केटेगरी के दोस्त बनाने हैं, कैसे खुद को बेहतर दिखाना है, कैसे सबके ध्यान का केंद्र बनना है आदि। सब कुछ एक टाईमटेबल-सा ही है, जहां बेचारी इंसान खुद को ही भूल जाता है कि वह क्या है?
वो कभी-कभी अपनों से ही हारना चाहता है, हां! वह क्रिकेट केवल नहीं खेलना चाहता, वह केवल इंजीनियर नहीं बनना चाहता, उसे हर वक़्त इंग्लिश में बात करना अच्छा नहीं लगता। वो कुछ वक़्त बिखरा, बिंदास रहना चाहता है और जब वह खुद की ही सफलताओं में कैद-सा हो गया है तो उसे हर बात नकली-सी लगती है। हर बात जो वह कहता है, सुनता है, ऐसा लगता है जैसे सब कुछ बनावटी है। उसका अस्तित्व सिर्फ़ और सिर्फ़ सफलता के कारण ही टिका है, वह अकेला कुछ भी नहीं है।
थोड़ा और परिपक्व होने पर बेचारा खुद के लिए क्या चाहता था, भूल ही जाता हैं और यही प्रक्रिया पीढ़ियों चलती रहती है । लेकिन सही मायने में यदि देखें तो आज के युवा के सपने ऊँचे होतें हैं, हर कोई बंगला कार तथा अन्य विलासिता वस्तुएं अपने लिए चाहता है । इनमे से कुछ लोग पा लेते है तथा कुछ के लिए केकल सपने रहा जातें हैं ।