गुजरात में BJP 1995 से सत्ता में है। इसलिए कुछ चुनौतियां ज़रूर हैं लेकिन अभी चुनाव भी बहुत दूर है। एंटी-इंकम्बेंसी का फ़ैक्टर तो है ही। बीस साल से ऊपर हो गए हैं BJP को सत्ता में रहते हुए | कार्यकर्ताओं को प्रेरित करना है। पिछले साल का मानसून बहुत अच्छा नहीं रहा है इसलिए किसान और खेती से जुड़े हुए भी तमाम मसले हैं। Amit Shah काफी व्यावहारिक आदमी भी हैं। उन्हें मालूम है कि ग्राउंड लेवल पर क्या चुनौतियां हैं। इन सब चुनौतियां का सामना तो उन्हें करना ही है। इसीलिए बीजेपी ने Gujarat Assembly election 2017 की तैयारियां बहुत ही पहले से शुरू कर दी हैं।
गुजरात विधान सभा चुनाव 2017 (Gujarat Assembly election 2017) में बीजेपी के सामने गुजरात में पटेल आंदोलन और Hardik Patel अभी भी एक चुनौती है पूरे गुजरात में पटेलों का प्रभाव है। हार्दिक पटेल के इर्द-गिर्द विपक्षी एकता कायम हो सकती है। शिवसेना के उद्धव ठाकरे और जेडी (यू) के नीतिश कुमार ने हार्दिक पटेल के साथ एकजुटता दिखाई है। सालों से पटेल बीजेपी का साथ देते आए हैं। अब देखने वाली बात होगी कि वे बीजेपी को छोड़कर हार्दिक का साथ देते है क्या?
दलितों और आदिवासियों का साथ परंपरागत रूप से कांग्रेस को मिलता है लेकिन फिर भी वह जीत नहीं पाते हैं। इसके लिए उनके एक और मजबूत समुदाय का साथ चाहिए जो कि दरबारी ठाकुरों का हो सकता है।
शंकर सिंह वाघेला इसी समुदाय से आते हैं। लेकिन अगर बीजेपी की तरफ चले जाते हैं तब कांग्रेस को नुकसान और बीजेपी को फ़ायदा होगा। हम आम तौर पर मानते हैं कि सिर्फ़ हिन्दी प्रदेशों में ही जाति का फैक्टर काम करता है लेकिन गुजरात में भी इसका बहुत महत्त्व है। बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में जो अति पिछड़ों को जोड़ने का फार्मूला अपनाया है वही वह गुजरात में भी पहले अजमा चुके हैं।
गुजरात में चालीस अति पिछड़ी जातियां हैं। इसमें यादव भी है जो सौराष्ट्र में है। इसलिए पटेलों के खिसकने और दलितों का साथ नहीं मिलने की हालत में ये जातियां एक बार फिर से बीजेपी के लिए फ़ायदे का सौदा साबित हो सकती है।
पीएम नरेंद्र मोदी के गृह प्रदेश गुजरात में दशकों बाद बैकफुट पर नजर आ रही बीजेपी ने गुजरात विधानसभा चुनावों को लेकर गुजरात विधान सभा चुनाव 2017 (Gujarat Assembly election 2017) मे एक नया दांव खेलना शुरू किया है। हार्दिक पटेल के कांग्रेस की तरफ झुकाव को देखते हुए बीजेपी को पटेल वोट बैंक में सेंधमारी का खतरा दिख रहा है। अपने इस वोट बैंक को बचाने के लिए बीजेपी अब गुजरात में वोटरों को कांग्रेस के KHAM समीकरण की याद दिला रही है।
दरअसल KHAM गुजरात कांग्रेस के दिग्गज नेता और मुख्यमंत्री रहे माधवसिंह सोलंकी के दिमाग की उपज थी। 1985 में इस समीकरण का इस्तेमाल कर सोलंकी ने 182 सीटों में से 149 पर कांग्रेस को बहुत बड़ी जीत दिलाई थी। जीत के इस भारी अंतर का रेकॉर्ड आज भी कायम है। KHAM का मतलब है क्षत्रिय (ओबीसी सहित) , हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम। गुजरात की 70 फीसदी आबादी को शामिल करने वाली इस इंजिनिरिंग ने उस वक्त कांग्रेस को अजेय बना दिया था। कांग्रेस के इस इस समीकरण में पटेल और ऊंची जातियों के वोट नहीं शामिल थे। बीजेपी अब पटेल वोटरों को यही याद दिला रही है।
गुजरात के पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के कांग्रेस उपाध्यक्ष से गुप्त मुलाकात की खबरों के बाद तो बीजेपी नेताओं ने एकसुर में यह बात कहनी शुरू कर दी है। दरअसल यह KHAM ही समीकरण भी था जो गुजरात में कांग्रेस के पतन का कारण बना, क्योंकि पार्टी इसे बनने के तुरंत बाद से ही कायम नहीं रख सकी। 1990 में चिमनभाई पटेल के नेतृत्व में जनता दल ने पटेल वोटों को अपने पक्ष में कर बीजेपी के साथ गठबंधन की सरकार बना कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया था।
ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि हार्दिक सारे पटेलों में स्वीकार्य हैं और उनके जाने से पूरा वोट बैंक साफ हो जाएगा। पर कांग्रेस हार्दिक की मदद से पटेल वोट बैंक में जितना भी सेंध लगा पाएगी वह बीजेपी के लिए नुकसान ही है। हार्दिक पटेल के सारे समर्थक युवा हैं औऱ उम्र के दूसरे और तीसरे दशक में हैं। ऐसे में युवा पटेल वोटर्स अगर बीजेपी का साथ छोड़ देंगे तो यह भा.ज.पा. को एक बड़ा नुकसान होगा ।
आगे देखते है की ह भा.ज.पा. की नई नीति कंहा तक कारगर साबित होती है ।