पूर्व में भी चीन भारत की हजारो हेक्टेअर भूमि पर कब्जा कर चूका है, उस समय की सरकारों ने इसे शायद नजर अंदाज कर दिया होगा। अब एक बार फिर चीन अपनी पुरानी वाली हरकतों को नए तरीके से अंजाम देना चाहता है। जब इंडियन ट्रूप्स ने Doklam एरिया में चीन के सैनिकों को सड़क बनाने से रोक दिया था। हालांकि चीन का कहना है कि वह अपने इलाके में सड़क बना रहा है। ये विवाद 16 जून से शुरू हुआ था। इस एरिया का भारत में नाम डोकाला है जबकि भूटान में इसे Doklam कहा जाता है। चीन दावा करता है कि ये उसके डोंगलांग रीजन का हिस्सा है। भारत-चीन का जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक 3488 km लंबा बॉर्डर है। इसका लगभग 220 km हिस्सा सिक्किम में आता है।
भारत से निपटने के लिए युद्ध के अलावा चीन के पास दूसरे विकल्प के रूप में पानी भी हैं । रक्षा जानकारों का कहना है कि ऐसा करके चीन भारत के कई राज्यों में ऐसी तबाही ला सकता है कि लाखों लोग बेघर हो जाएंगे। कई नदियां चीन से होकर भारत में आती हैं। चीन यदि ब्रह्मपुत्र, सतलुज और सिंधु नदी पर बने बांधों में पानी कुछ समय के लिए रोक ले और फिर पानी को एक साथ छोड़ दे, तो भारत के कई राज्य पानी-पानी हो जाएंगे। ये पानी ऐसी तबाही लाएगा, जिससे लाखों लोग प्रभावित होंगे। 2012 में पूर्वोत्तर के राज्यों में चीन ने बिना पूर्व चेतावनी के बांध का पानी छोड़ दिया था। इससे काफी नुकसान हुआ था।
1962 के भारत-चीन युद्ध के बारे में जो जानकारी सामने आई है उससे लगता है उस वक्त के राजनीतिक नेतृत्व और सेना के कई कमांडरों ने अपनी जवाबदेही ठीक से नहीं निभाई जिसकी वजह से भारत को हार का मुंह देखना पड़ा। बताया जाता है कि न तो सेना लड़ने के लिए तैयार थी, न ही उसके पास कपड़े थे और न ही हथियार। रही सही कसर मौसम ने पूरी कर दी थी। वायुसेना के कई रणनीतिकारों को यह बात आज तक हजम नहीं हुई कि आखिर उस वक्त जंग में वायुसेना का इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया क्योंकि चीनी वायुसेना की तुलना में उस समय हमारी भारतीय वायुसेना काफी बेहतर थी।
हालांकि सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत का कहना है कि भारत ढाई फ्रंट से निपटने के लिए तैयार है। इसमें चीन और पाकिस्तान के अलावा देश के भीतर मौजूद आंतरिक खतरों से निपटना भी शामिल है। चीन को यह बातें हजम नहीं हुईं और उसने बिना सेना प्रमुख का नाम लिए इसे गैरजिम्मेदाराना बयान बताया इतना ही नहीं पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के प्रवक्ता ने कहा कि भारतीय सेना के वह शख्स इतिहास से सीख लें और युद्ध के बारे में इस तरह से शोर मचाना बंद करें। वैसे यह भी हकीकत है कि केवल सेना के बूते चीन को भारत धमका नहीं सकता। हमारी सेना चीन की तुलना में उतनी मजबूत नहीं है।
भले ही चीन की आर्मी के सामने भारत की सेना हल्की नजर आती है लेकिन कई मामलों में भारत आगे है। चीन के पास भले ही सबसे पावरफुल आर्मी है लेकिन भारत के पास दूसरे देशों का सहयोग है। सोशल मीडिया पर भी जब भारत-चीन आर्मी के बीच तुलना की तो, लोगों ने कई बातों पर प्रकाश डाला जो गौर करने वाली चीज है।
भले ही चीन की आर्मी के सामने भारत की सेना हल्की नजर आती है लेकिन कई मामलों में भारत आगे है। चीन के पास भले ही सबसे पावरफुल आर्मी है लेकिन भारत के पास दूसरे देशों का सहयोग है। सोशल मीडिया पर भी जब भारत-चीन आर्मी के बीच तुलना की तो, लोगों ने कई बातों पर प्रकाश डाला जो गौर करने वाली चीज है। कई ऐसे देश हैं जो युद्ध के दौरान भारत का साथ देंगे। जिसमें अमेरिका, इजराइल, वियतनाम और जापान जैसे देश हैं। क्योंकि इस देशों से भारत के सम्बंध बहुत अच्छे हैं। अमेरिका ने भी कहा है कि भारत को अपनी सीमाएं सुरक्षित रखने का अधिकार है।
रूस हर कदम पर भारत के साथ खड़ा है।
जैसे की इजराइल ने कहा है कि चीन को भारत से पहले हमसे (इजराइल) लड़ना होगा।
भूटान ने भी कहा है कि भारत की और से लड़ेंगे और तिब्बत को भी भारत में मिला देंगे।
ताईवान का भी कहना है कि बीजिंग में घुस कर चीनी ध्वज उतार देंगे।
हालांकि, चीन तो क्या, यह बात हर कोई जानता है कि अब लड़ाई किसी देश के बूते की बात नहीं है। हां बस इसके नाम पर दबाव ज़रूर बनाया जा सकता है। सच्चाई यह है कि भारत, अमेरिका और जापान की दोस्ती चीन को रास नहीं आ रही है। लिहाजा वह दबाव बनाने के लिए यह सब कर रहा है, ताकि इन तीनों देशों की दोस्ती परवान न चढ़ सके और इस क्षेत्र में उसका दबदबा कायम रहे।