आखिर कब तक पनपता रहेगा धर्म की आड़ में अपराध

भारत के धर्मशास्त्र-रचयिताओं ने गुरु की महिमा की पूरी-पूरी प्रशंसा की है। संतो की महिमा न्यारी है संसार के ताप से तप्त लोगों को वे शीतल छाया प्रदान करते है | चैन, आराम और सुकुन देते है। मानव का एक वर्ग–बहुत बडा वर्ग–ऐसा है जो संतो के बाह्य चमत्कारों से चकाचौंध हो जाता है, किन्तु कई संत पोंगा पाखंड दिखाकर भारतीय संस्कृति पर कलंक बन गए हैं। ऐसे संतों से अब आम जनता को सावधान रहना है।

कहीं भी धर्म की स्थापना के लिये जन चेतना आंदोलन की आवश्यकता तो हो सकती है पर वहां संगठन बनाने और उसे चलाने की आवश्कता ही नहीं है। जहां संगठन बनते हैं वहां पर पदाधिकारियों की नियुक्ति होती है और तब वहां आम और खास का अंतर भी निर्मित होता है। यही अंतर धर्म की आड़ में अधर्म करने का आधार बनता है क्योंकि वहां आम आदमी को धाार्मिक स्थानों और आयोजनों में एक ग्राहक और खास को उत्पादक या व्यवसायी बना देता है। जहां व्यवसाय वाली बात आई वहां भ्रष्टाचार स्वाभाविक रूप से पनपता है चाहे भले ही वह धर्म प्रचार से क्यो न जुंड़ा हो ऐसे में विश्व में चल रहे किसी भी धर्म के आचार्य पर जब कोई आर्थिक, यौन अथवा राजनीतिक अपराध करने का कोई आरोप लगता है तो उसमें आश्चर्य जैसी कोई बात नहीं है।

एक बात यह भी है कि हमारे भारत में उत्पन्न धर्म संगठन पर आधारित नहीं है। उनका लक्ष्य उत्तम व्यक्ति निर्माण है। यही कारण है कि यहाँ धर्मगुरुओं पर कोई अंकुश नहीं रहता। ऐसे में कुछ धार्मिक लोगों के पापों के लिये पूरे समाज को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। भारत के धर्म प्रत्यक्ष रूप से राजनीति के लिये प्रेरित नहीं करते इसलिये यहाँ के किसी राजा ने उसके विस्तार का कभी प्रयास भी नहीं किया। इसके विपरीत भारत के बाहर उत्पन्न धर्म मनुष्य को इकाई में स्वतंत्र विचरण से रोककर उस संगठन के आधार से जुड़ने के लिये बाध्य करते हैं और उनमें राजनीतिक प्रभाव के सहारे विस्तार पाने की प्रवृत्ति भी देखी जा सकती है।

जब व्यक्ति बिना परिश्रम किये संक्षिप्त रास्ते से धन-दौलत, यश-कीर्ति पाने की लालसा रखता है, व्याधि आदि से मुक्ति चाहता है तो वह ऐसे किसी चमत्कारिक शक्ति की खोज में निकल पड़ता जो तत्काल उसकी मुराद पूरी कर सके | उसे ऐसे अनेक तथाकथित सिद्ध पुरुष जो अपने को चमत्कारिक शक्तियों से पूर्ण बताते हैं, सहजता से मिल जाते हैं। अपनी वाकपटुता से उस व्यक्ति की मनोकामना की पूर्ति का पूरे विश्वास के साथ वचन देते हैं। एक बार ऐसे तथाकथित सिद्ध पुरुष के संपर्क में आ जाने के बाद किसी भी व्यक्ति का उसकी पकड़ से जल्दी बाहर निकाल पाना आसान नहीं होता है।

प्रत्येक मानव को अपने जीवन में दुख-सुख, लाभ-हानि, शुभ-अशुभ आदि उसके कर्मानुसार ही मिलता है, न थोड़ा ज़्यादा और न थोड़ा कम। कर्म और फल का सम्बन्ध कार्य-कारण-भाव के नियम पर ही आधारित है। यदि कारण मौजूद है तो कार्य अवश्य ही होगा। यही प्राकृतिक नियम आचरण के मामले में भी सत्य है। किये गये प्रत्येक कर्म का फल कर्ता को ही भोगना होता है। इसमे किसी प्रकार की एवजी नहीं चलती। न ही इसका कोई शार्ट कट है। यदि कर्ता अपने द्वारा किये गये सभी कर्मो का फल भोगे बिना ही मृत्यु को प्राप्त होता है तो उसे पुनर्जन्म पश्चात प्रारब्ध के शेष कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है। देहावसान के पश्चात जीव केवल शरीर बदलता है। कर्ता के रूप में उसकी कभी मृत्यु नहीं होती है ।

कुछ समय पहले निर्मल बाबा {Nirmal Baba} (असली नाम निर्मलजीत सिंह नरूला) के समागम और उसमे की जाने वाली अनर्गल एवं अवैज्ञानिक बातों की मीडिया में व्यापक चर्चा हुई। बात आगे बढ़ी तो कुछ भुक्त भोगियों ने उक्त  बाबा के पाखंड का पोल खोलते हुए उनपर धोखाधड़ी का आरोप लगाया। कई जगह उनके विरुद्ध एफआईआर दर्ज हुई। मीडिया वालों ने जब गहराई तक जाकर जांच पड़ताल की तो विस्मयकारी खुलासा हुआ। सूत्रों के अनुसार बाबा के पास 240 करोड़ की संपत्ति  पाई गई  जो कि लोगों के साथ धोखा करके ऐंठा गया है। मैंने भी इस बाबा के कुछ समागम के कार्यक्रमों को टीवी पर इस आशय से देखा कि कौन सी ऐसी दिव्य शक्ति इनको प्राप्त हो गई है जिससे इनका तीसरा नेत्र जागृत हो गया है। बाबा द्वारा समागम में दर्शनार्थियों से यह पूछना कि आज आप ने गधा देखा, आप के पास पर्स है, आप ने लड्डू खाया, आप ने साँप देखा आदि सिद्ध करता है कि ऐसी ऊल-जलूल बातें किसी अज्ञानी एवं मूर्ख व्यक्ति की ही हो सकती है।

वैसे तो धर्म के नाम पर देश में तमाम चोर उचक्के संत बन कर लोगों को बेवकूफ बनाते रहते है। परंतु आशाराम (Asaram) जैसे तथाकथित संतों की असलियत अगर यही है तो इस देश का तो भगवान ही मालिक है। मैने देखा था लोगों को आँख बंद कर आशाराम के सत्संगों में दौड़ जाते थे, सबसे ज़्यादा दीवानगी तो महिलाओं में होती है। तो क्या आशाराम पहले भी कई विवादों में घिरे रहे है। आशाराम के बेटे पर भी आश्रम की कई साधिकाओं के साथ यौन शोषण का आरोप लग चुका है। जुलाई 2008 में अहमदाबाद स्थित उनके आश्रम में दो छात्र रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाए गए थे। उन पर काला जादू कर तांत्रिक क्रिया किये जाने का आरोप लगा था। उस मामले में अभी भी आशाराम संदेह के घेरे में थे। उनके अनुयायियों पर सूरत में जमीन हड़पने के भी आरोप हैं। अपने आप को संत कहने वाले आशाराम खुलेआम मीडिया से कई बार गाली-गलौज कर चुके है। अगर वास्तव में संत का आचरण ऐसा होगा तो शैतान कैसा होगा, हम इसकी कल्पना कर सकते है और इस बाबा की तमाम हरकते अब ज़माने के सामने है।

ये भीड़ है बाबू इसकी कोई शक्ल नहीं होती है। उठा दे तो आसमान में और गिरा दे तो कोई तल नहीं होता।

नित्यानंद, आशाराम (Asaram) और बाबा रामपाल {Rampal} जैसे पाखंडी बाबा है जो धर्म की आड़ में पाप और कुकर्म का खेल खेलते रहे है। ये अक्सर भूल जाते है कि अधर्म से जुड़ा हर कार्य एक भयानक अंत की ओर ले जाता है। बाबा रामपाल के जो भी कुकर्म सामने आये है उसे प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं है क्योकि खुद रामपाल के पास भी इसका ठोस जबाब नहीं रहा था।

आस्था और विश्वास में अंधी भोली-भाली जनता के साथ ये धर्मगुरु धर्म के नाम पर खिलवाड़ करते हैं। दोनों ही धर्मगुरु अपने अंधभक्तों के सामने नौटंकी करने में भी माहिर हैं। आसाराम (Asaram) और उनके बेटे नारायण साईं पर दो बहनों से दुष्कर्म का आरोप लगा था। बताते हैं कि दोनों पिता-पुत्र आश्रम रहने वाली महिलाओं और साध्वियों के साथ अश्लील हरकतें करते थे और उन्हें किसी न बताने की धमकी भी देते थे।

दोनों धर्मगुरुओं ने अपने अंध भक्त के जरिए गुंडागर्दी कर दबाव बनाने के प्रयास भी किए | Asaram को जेल में गए लगभग 4 साल का लंबा समय हो चुका है, लेकिन उनके भक्तों की हिम्मत अभी तक अपने गुरु को निर्दोष मानते हैं। वे अब भी बाबा का प्रचार करते हुए सड़कों पर नजर आ जाते हैं।

ऐसे ही राम रहीम के अंध भक्तों की गुंडागर्दी कहे या भक्ति 25 अगस्त को पंचकूला और बाकी शहरों में दिखाई दी। इन कथित भक्तों ने दर्जनों गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया। पुलिस पर पथराव किया। इस दौरान 38 लोगों की मौत भी हो गई थी। आसाराम के भी लाखों भक्त सड़कों पर उतरे थे, जिन्होंने दबाव बनाने का प्रसास किया, लेकिन प्रशासन की सूझबूझ से ऐसा कुछ नहीं हुआ।

एक और पाखंडी बाबा राम रहीम की हरकतें ऐसी थी कि पंजाब और हरियाणा नफरत की आग में झुलस उठे। बाबा राम रहीम ने सिखों की धार्मिक भावनाों को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। कहा गया कि गुरु गोविंद सिंह की नकल कर बाबा ने अपनी पोशाक तैयार कराई. फिर क्या था कई दिनों तक पंजाब-हरियाणा में तलवारें खिंचीं रहीं। हर तरफ हंगामा शुरू हो गया। विवादों से डेरा बाबा का नाता बहुत पुराना है। बाबा गुरमीत राम रहीम पर डेरा की शिष्याओं से बलात्कार का आरोप लगा। जांच टीम को डेरा बाबा के यहाँ एक गुफा भी मिली। आरोप था कि बाबा राम रहीम ने इसी गुफा में शिष्याओं से बलात्कार किया। यही नहीं आरोप ये भी है कि जब ये खबर अखबार में छाप दी गई तो उसका कत्ल करा दिया गया। इस हत्या का आरोप भी बाबा राम रहीम पर लगा। हत्या और बलात्कार के केस के अलावा बाबा राम रहीम पर गांव के किसानों की जमीन हथियाने का भी आरोप लगा। राम रहीम ने अदालतों में चल रही तमाम अदालती कार्यवाही पर भी असर डालने की कोशिश की। पूरा प्रशासन बाबा के चलते अपनी नींद उड़ाए रहा। लेकिन खुद राम रहीम आराम से बैडमिंटन खेलते रहे जब तक की अदालत का फैसला नहीं आ गया। अब ये बाबा भी जेल में है।

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