Ayurveda के अनुसार आपके मन का स्थूल रूप शरीर है और शरीर का सूक्ष्म रूप मन है। अतः मनुष्य के शरीर से किए गए कर्मों का मन पर और मन में आने वाले विचारों का शरीर पर बहुत महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। अतः हमारे शरीर एवं मन के बीच स्वस्थ संवाद व संतुलन ज़रूरी है और इसके लिए ज़रूरी है अपनी प्रकृति को समझना। क्योंकि प्रकृति के रहस्य को समझना परमात्मा को समझने का पहला पाठ है।
सामान्यत: Ayurveda में 3 प्र्कार की प्रकृति बताई गई हैं, वात , पित्त और कफ । इन तीनों का सम होना यानी बराबर मात्रा में होना शरीर को स्वस्थ रखता है, जबकि इनमे से किसी की भी कमी या अधिकता से रोगों की उत्पत्ति होती है। त्रिदोष के अलावा द्विदोषज एवं सन्निपातज पृकृति भी हैं, लेकिन जटिलताओं से बचने के लिए हम यहां 3 प्रकृति की ही बात करेंगे। इन्ही 3 श्रेणियों में डालकर पूरी दुनिया के लोगों के स्वाभाव एवं स्वास्थ्य का अध्ययन किया जा सकता है और बताया जा सकता है की उन्हें कब और किस तरह की व्याधियों का सामना करना पड़ेगा। बेशक इसमें हस्तरेखा विज्ञान का भी सहारा लेना पड़ता है, लेकिन भावी व्याधियों को आज से ही अपने खान-पान एवं जीवन शैली में सुधार करके टाला जा सकता है।
आइये हम जानते हैं इन तीनो पृकृतीयों के बारे में
वात पृकृति
वात पृकृति के लोगों में बुद्धिमानी, वाक्चातुर्य, कूटनीति एवं परिस्थितियों के अनुकूल ढल जाने का गुण पाया जाता है। इनमें पाई जाने वाली मन की चंचलता इनमें उदासी, ईर्ष्या एवं तथ्य छुपाने जैसे दोष उत्पन्न करती है जिससे ये बनावटी से लगते हैं और इन्हे हमेशा लोगों का विश्वास खोने का डर रहता है। इनकी दिनचर्या एवं जीवन शैली इनके मूड के हिसाब से बदलती रहती है जिससे ये गैस, डिप्रेशन, घबराहट एवं जोड़ों के दर्द का शिकार हो जाते हैं। इन्हें समय से हल्का सुपाच्य भोजन करना चाहिए | हलका व्यायाम बेहतर है। बासी गरिष्ठ भोजन न लें। नींद पूरी लें तो स्वस्थ रहेंगे। इनकी हथेली का रंग पीला एवं त्वचा रूखी होती है।
पित्त पृकृति
पित्त पृकृति के लोग वीर साहसी कार्यकुशल एवं अतिसक्रिय स्वभाव के होते हैं। लेकिन उम्र के साथ इनमें क्रोध व घमंड की प्रवृति बहुत बढ़ जाती है जिससे इनमें परपीड़न जैसे दोष बढ़ जाते हैं। समय रहते दोषों का निराकरण करने से ये समाज में उच्च प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं। इनके स्वास्थ्य में ज्यादातर ज्वर, जल, चक्कर आना, अल्सर, फोड़े-फुंसी से परेशान रहते हैं। पित्त पृकृति के लोगो की हथेली का रंग लाल एवं स्पर्श में कठोर व गर्म होती है।
कफ पृकृति
कफ पृकृति के लोग बहुत उदार, दीर्घायु, पुष्ट शरीर वाले सहनशील एवं आराम से काम करने वाले होते हैं। इनकी सामान्य तकलीफों में सर्दी, जुकाम हैं। लेकिन उम्र के साथ जब शारीरिक या मानसिक दोष विकृत हो जाते हैं तो इनमें अवगुण प्रकट हो जाते हैं जिनमे प्रमुख हैं-पराया धन एवं स्त्री पर ग़लत नज़र, अच्छा जीवनसाथी होने के बावजूद व्यभिचार की प्रवृति इनके पतन का कारण बनती है। अतः प्रत्येक मनुष्य का यह कर्त्तव्य है कि जब उसे लगे उसके जीवन में कुछ असामान्य हो रहा है तो योग्य व्यक्ति से सलाह ले और संभलकर पुनः आगे बढ़ें, अन्यथा टीबी, शुगर बीपी, के साथ त्वचा एवं गुर्दों के गंभीर रोग हो सकते हैं। कफ पृकृति के लोगो की हथेली गुलाबी सफ़ेद एवं मोटी गद्देदार होती है।
इसीलिए आपकी पृकृति जो भी हो जीवन में जब भी कोई स्वास्थ्य संकट आए, तो निंम्नलिखित 5 चीजें ज़रूर आजमाएं
- मन्त्र अर्थात (जीवन में ज्ञानियों से परामर्श)
- औषधि (हमेशा अनुभवी डॉक्टर द्वारा दी गई दवा)
- तप (जब भी कष्ट जो भी हो धैर्य से सहना)
- दान (जो भी संग्रह किया है उसका बोझ कम करना-बांटना श्रम, ज्ञान, धन)
अतः प्राकृतिक निदान के द्वारा न सिर्फ़ भावी रोगों को पहचाना जा सकता है बल्कि जीवन शैली में बदलाव एवं औषधियों के द्वारा शरीर को रोग का मुकाबला करने के लिए तैयार किया जा सकता है।