एक बार पुनः जीएसटी की खामियों के विरोध में 30 जून को प्रदेश में कारोबार बंद की सम्भावना दिखाई दे रही है
प्रदेश के तमाम व्यापारी संगठन चाहते है की अपील, रिफंड और रिर्टन की समस्याओं को दूर किया जाए। जुर्माना और जेल की सख्त धाराओं को इस एक्ट में कम किया जाए और बचे हुए स्टॉक पर आइटीसी कैसे मिलेगी, इसका भी समाधान हो। किसी भी देश में जीएसटी की इतनी अधिक दर नहीं है। इन्हीं ख़ामियों को दूर नहीं किए जाने के विरोध में 30 जून को प्रदेश में कारोबार बंद रहने की संभावना है |
समझ में नहीं आता की हमेशा बंद या हड़ताल , या किसी प्रकार के नुकसान के बाद ही क्यों , किसी भी बात पर विचार किया जाता है | सरकार के पास बड़े बड़े प्रशासनिक अफसरों की फौज, रहती है तो क्यों न बंद या हड़ताल के पूर्व ही पुनः विचार किया जाये l
जीएसटी के लागू होने के जैसे-जैसे दिन पास आ रहे हैं, व्यापारियों का विरोध बढ़ता जा रहा है। खासतौर से कपड़ा और दाल कारोबारियों की नाराजगी ज्यादा है। ये व्यापारी पहले ही कह चुके हैं कि अभी तक इन दोनों पर टैक्स नहीं था, जिसे जीएसटी के दायरे में लाकर टैक्स लगाया गया है। सूरत के कपड़ा कारोबारियों ने 27 से 29 जून तक तीन दिन के बंद का ऐलान कर दिया है और सूरत के बंद को देखते हुए इंदौर के भी कपड़ा कारोबारी इस हड़ताल में जाने का मन बना रहे हैं।
ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष ने भी ब्रांडेड दालों पर पांच फीसदी जीएसटी लगने का विरोध किया है। एसोसिएशन ने भी 30 जून को बंद का समर्थन करते हुए सभी दाल मिलों में कामकाज बंद रखने की बात कही है। उन्होंने कहा कि दालों पर बीते 15 सालों से किसी प्रकार का वाणिज्यिक, प्रवेश कर नहीं लगा है। पांच फीसदी जीएसटी लगने से दालों के दाम तीन से चार रुपए प्रति किलो तक बढ़ जाएंगे। वहीं प्रदेश में मंडी शुल्क भी लगता है। यानी व्यापारियों पर दोहरा कर लगेगा और इसका बोझ आम उपभोक्ता पर आएगा। अग्रवाल ने कहा कि बंद रखने को इंदौर के साथ ही भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर, खंडवा, खरगोन, मुरैना, उज्जैन, देवास, छतरपुर सहित अन्य जिलों के कारोबारियों ने भी समर्थन कर दिया है।
मतलब सिर्फ समझ का फर्क दिखाई दे रहा है l यानि की व्यापारी जी . इस .टी. का विरोध नहीं कर रहें है |
जी . इस .टी . के साथ जो जटिल नियम आ रहे हैं उनका विरोध है l जिन पर पुनः विचार किया जा सकता है |
कभी समय मिले तो जरूर विचार कीजियेगा की हमारे देश में कितना समय और कितना पैसा, इन आंदोलनों और हड़ताल तथा बंद एवं जुलुस इत्यादि पर खर्च होता है ।
हम यहां पर एक बार फिर दोहराएंगे की हड़ताल, बंद , तथा जुलुस इत्यादि तक बात जाने के पूर्व एक बार पुनः सरकार को अपने अफसरों से सलाह ले कर मध्य का रास्ता निकलना चाहिए | बंद तथा हड़तालों से किसी का भी फायदा नहीं होता | जंहा सरकार को हजारो करोड़ रूपये का टेक्स का नुकसान होता है, वंही व्यापारियों को भी, स्टाफ की सेलरी तथा अन्य नुकसान होता है | सरकार को चाहिए की ये हिटलरशाही बंद करके सबको साथ लेकर देश का विकास करने का प्रयास करे | क्या सरकार सभी कुछ इन पांच वर्षो में ही करना चाहती है ?
क्या आने वाले पांच सालो के लिए भी कुछ काम सरकार को अपने पास नहीं रखना चाहिए ?
किसान आंदोलन के पूर्व भी हमारे द्वारा एक ब्लॉग में इन सभी बातों का उल्लेख किया गया था किन्तु उस समय इन सब बातों को हलके में लिया गया था तथा जब आंदोलन ने उग्र रूप लिया तब सरकार की नींद खुली | हम किसी भी सरकार के विरोधी या पक्षधर नहीं है | हम सिर्फ कायदे एवं सबके फायदे की बात करते है |