भारत में लोकतांत्रिक सरकार है और यहाँ राष्ट्रपति का चुनाव होता है, इसलिए यह गणतंत्रात्मक व्यवस्था है। भारत हिंसात्मक विभाजन, फिर आजादी और अंततः गणतंत्र के रूप में वैश्विक पटल पर अपने सातवें दशक (वर्ष 2019) में प्रवेश करने की ओर अग्रसर है। निश्चित रूप से यह संविधान की प्रस्तावना में वर्णित प्रथम शब्द ‘वी द पीपुल’ (हम भारत के लोग) की शक्ति को मजबूती से दरसाता है, क्योंकि इस गणतंत्र को सही मायने में शक्ति भारत के आम लोगों से ही मिलती है, इसमे कोई संदेह नहीं कि दो वर्ष पूर्व मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से अब तक विदेशमंत्री सुषमा स्वराज और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सूझबूझ और कूटनीति से पूर्ण प्रयासों के मिश्रित फलस्वरूप भारतीय विदेश नीति (Indian Foreign Policy)को न केवल एक नई ऊंचाई और आयाम प्राप्त हुआ है, बल्कि बतौर वैश्विक इकाई भारत की स्थिति भी विश्व पटल और अधिक मजबूत तथा मुखर हुई है।
आज भारत अपने लोकतांत्रिक मूल्यों को अक्षुण्ण रखते हुए बदलती भू-सामरिक आर्थिकी और ऊर्जा सुरक्षा के त्रिकोण के साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, क्रिटिकल इंफ्रास्ट्रक्चर, क्वांटम कंप्यूटर जैसे तमाम क्षेत्रों में वैश्विक पटल पर मजबूती से स्थापित हो रहा है। अब यह किसी की स्वीकार्यता का मोहताज नहीं रहा है। चंद्रमा से मंगल तक सफलतम यात्रा के साथ-साथ अंतरिक्ष में पीएसएलवी की सफलतम शतकीय भागीदारी हमें उच्चतर प्रतिमान पर स्थापित करती है |
विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विश्व भर के तमाम छोटे-बड़े देशों की यात्राओं से भारत की ये नवीन वैश्विक छवि गढ़ने में अत्यंत महत्त्वपूर्ण और अभूतपूर्व योगदान रहा है। हालांकि वैश्विक महाशक्ति अमेरिका से तो भारत के सम्बन्ध संप्रग-1 के कार्यकाल के समय से ही एक हद तक गतिशील हो गए थे, लेकिन बावजूद इसके संप्रग के कार्यकाल के अंतिम वर्षों तक उनमे अस्थिरता की स्थिति ही मौजूद रही साथ ही तत्कालीन सम्बंधों में भारत काफी हद तक अमेरिका के समक्ष याचक की भूमिका में ही रहा था। लेकिन मोदी सरकार के इन दो वर्षों में इस वैश्विक महाशक्ति से भारत के सम्बन्ध एकदम नए रूप में उभरकर सामने आते दिख रहे हैं और इसका बड़ा श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है, जिन्होंने अपने कार्यकाल में ही अमेरिका की चार यात्राएँ की हैं।
दरअसल, ये यात्राएँ पूर्व प्रधानमंत्रियों की तरह सिर्फ़ व्यापारिक गतिविधियाँ बढ़ाने या भारत को सहायता दिलाने जैसी बातों पर आधारित नहीं रहीं, बल्कि प्रत्येक यात्रा का अपना एक अलग और ठोस महत्त्व रहा है। इस यात्रा के दौरान उन्होंने अमेरिकी संसद को सम्बोधित भी किया, जिसमे उनके द्वारा भारत समेत समूचे विश्व की तमाम चुनौतियों और संभावनाओं तथा इनके बीच भारत-अमेरिका सम्बंधों के महत्त्व को बेहद तार्किक ढंग से रेखांकित किया गया।
आज विश्व के तमाम मंचों पर भारत की खोज निश्चित रूप से होती है। चाहे वह अफगानिस्तान से सम्बंधित रणनीतिक मसला हो या आर्कटिक परिषद की सामरिक बैठक, दक्षिणी और पूर्वी चीन सागर में मुक्त एवं निर्बाध नौवहन हो या पूरे हिंद महासागर को शांति क्षेत्र (जोन ऑफ पीस) स्थापित करने की पहल। यह भारतीय सहयोग ‘कोई बंधन संलग्न नहीं’ जैसे अनूठे मॉडल के जरिये हमारे भागीदार देशों की आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं के आधार पर काम कर रहा है। इनके अलावा संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद में सुधारों की आवश्यकता हो या विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization) के व्यापार बैठकों में कृषि और बौद्धिक संपदा से जुड़े मसलों पर विकसित देशों की मनमानी और उनके कुत्सित मंसूबों पर पानी फेरना। कृषि सब्सिडी, खाद्य सामग्री की स्टॉक होल्डिंग और पीस क्लाउज जैसे मुद्दों पर विकासशील और अल्प विकसित देशों के व्यापार और वणिज्य से सम्बंधित मसलों और स्वयं सिद्ध हितों पर मुखर रूप से पक्ष रखने में भारत की भूमिका अहम रही है।
ये सभी बातें इस और इंगित करती है की वैश्विक पटल पर भारत की छवि निश्चित ही चमकदार और रौबदार हूई है , यह एक दमदार कूटनीति और विदेश नीति के कारण ही संभव हो पाया है ।