हाल ही में अहमदनगर के एक छोटे से पुंटांबा गांव से शुरू हुआ 200 किसानों का छोटा सा आंदोलन महाराष्ट्र के साथ-साथ मध्यप्रदेश और गुजरात में भी जोर पकड़ने लगा है। मालवा और निमाड़ क्षेत्र में हड़ताल के दूसरे दिन शुक्रवार को दूध और सब्जी की किल्लत हो गई। शहरों में बंदी का दूध बंटना भी बंद है, क्योंकि गांवों से दूध यहां पहुंच ही नहीं पा रहा है। किसानों को सब्जी उत्पादक और दूध विक्रेताओं का भी साथ मिल गया है। फसलों और दूध के उचित दाम दिलाने की मांग को लेकर हड़ताल के पहले दिन अंचल में गुरुवार को किसानों का गुस्सा फूट पड़ा। जगह-जगह सब्जी और उपज लाने से लोगों को रोका गया। सड़कों पर दूध बहा दिया गया।
मध्यप्रदेश में किसानों ने 1 जून से 10 जून तक हड़ताल का ऐलान किया है. हड़ताल के पहले दिन उज्जैन, नीमच और झाबुआ में किसानों ने जमकर हंगामा किया. यहां किसानों ने सैकड़ों लीटर दूध सड़कों पर बहा दिया| इंदौर में भी किसानों ने इसी तरह सड़कों पर दूध बहाकर विरोध दर्ज कराया. भारतीय किसान यूनियन के बैनर तले हो रहे इस विरोध प्रदर्शन में सब्जी उत्पादक, फसल उत्पादक व दूध उत्पादक किसान शहरों, कस्बों की मंडियों व सोसायटियों में सब्जी, दूध बेचने नहीं जाएंगे| यंहा पर विरोध करने का यह तरीका समझ से परे दिखता है| सेकड़ो लीटर दूध को सड़क पर बहा देना , सब्जी को सड़क पर फेक देना| इस सबमे आपकी कीस प्रकार की मानसिकता प्रदर्शित करता है | जरा विचार कीजिए ठीक है आपको सरकार को अपना विरोध दर्ज करना है ,जरूर कीजिए लोकतंत्र में आपका भी पूरा अधिकार है| परन्तु विरोध करने का यह तरीका सही नहीं है |
आप उसी उत्पाद को नष्ट कर रहे है जिसे आपने अपनी मेहनत से अर्जित किया है| जगह जगह किसानो ने मंडियों में जा रहा दूध छीनकर फेंक दिया। सड़क पर फेकना या नष्ट करना विरोध प्रदर्शित करने का सही तरीका कभी नहीं हो सकता | बहरहाल किसानो की मांग जायज हो सकती है | सर्कार ने भी उन पर धयान देना चाहिए | परन्तु जनता को ये कीस बात की सजा दी जारही है| आपकी लड़ाई सरकार से है , जरूर आप अपना विरोध दर्ज करे परन्तु शालीनता से अभी अभी मिले समाचार के अनुसार इंदौर में किसानो और प्रसाशन के मध्य छोटी सी झड़प भी हुई | सरकार को जल्द ही इनकी बात पर विचार करना चाहिए वर्ना ये आंदोलन और भी उग्र रूप धारण कर लेगा हैं सब जानते है की हमारी ७० फीसदी आबादी कृषि पर आधारित है |