हिंदू सभ्यता में मान्यता है कि कुछ पेड़-पौधों को घर में लगाने या उनकी उपासना करने से घर में हमेशा खुशहाली रहती है या घर में सदैव लक्ष्मी का वास रहता है। पीपल, केला और शमी का वृक्ष आदि ऐसे पेड़ हैं जो घर में समृद्धि प्रदान करते हैं। इसी तरह मान्यता है कि शमी का पेड़ घर में लगाने से देवी-देवताओं की कृपा अनवरत बनी रहती है।
शमी के पेड़ की पूजा करने से घर में शनि देव का प्रकोप कम होता है। यूं तो शास्त्रों में शनि के प्रकोप को कम करने के लिए कई उपाय बताएं गए हैं। लेकिन इन सभी उपायों में से प्रमुख उपाय है शमी के पेड़ की पूजा सर्वोत्तम है। घर में शमी का पौधा लगाकर पूजा करने से आपके कामों में आने वाली समस्त रुकावट दूर होगी।
शमी वृक्ष की लकड़ी को यज्ञ की वेदी के लिए बहुत ही पवित्र माना जाता है। शनिवार को करने वाले यज्ञ में शमी की लकड़ी से बनी वेदी का विशेष महत्त्व है। एक मान्यता के अनुसार कवि कालिदास को शमी के वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या करने से ही ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
उत्तर भारत के बिहार और झारखंड में सुबह के समय उठने के बाद शमी के वृक्ष के दर्शन को बहुत ही शुभ माना जाता है। बिहार और झारखंड में यह वृक्ष अधिकतर घरों के दरवाजे के बाहर लगा हुआ मिलता है। ताकि लोग किसी भी काम पर जाने से पहले इसके दर्शन करते और इसे माथे से लगाते हैं, ऐसे करने से उन्हें उस काम में कामयाबी मिलती है।
पीपल और शमी दो ऐसे वृक्ष हैं, जिन पर शनि का प्रभाव होता है। पीपल का वृक्ष बहुत बड़ा होता है, इसलिए इसे घर में लगाना संभव नहीं हो पाता। वास्तु शास्त्र के मुताबिक नियमित रूप से शमी की पूजा करने और उसके नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाने से शनि दोष और उसके कुप्रभावों से बचा जा सकता है।
दशहरे पर खास तौर से सोना-चांदी के रूप में बांटी जाने वाली शमी की पत्तियां, जिन्हें सफेद कीकर, खेजडो, समडी, शाई, बाबली, बली, चेत्त आदि भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म की परंपरा में शामिल है। आयुर्वेद में भी शमी के वृक्ष का काफी महत्त्व बताया गया है।
शस्त्र पूजन
क्षत्रियों का यह बहुत बड़ा पर्व है। इस दिन ब्राह्मण सरस्वती पूजन और क्षत्रिय शस्त्र पूजन करते हैं।
आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी को शस्त्र पूजन का विधान है। 9 दिनों की शक्ति उपासना के बाद 10वें दिन जीवन के हर क्षेत्र में विजय की कामना के साथ चंद्रिका का स्मरण करते हुए शस्त्रों का पूजन करना चाहिए. विजयादशमी के शुभ अवसर पर शक्तिरूपा दुर्गा, काली की आराधना के साथ-साथ शस्त्र पूजा की परंपरा भी है।
हमारे देश में विजयादशमी पर शस्त्र पूजा की परंपरा काफी पुरानी है। कहते हैं कि हजारों साल से चली आ रही इस परंपरा का निर्वाह समाज की रक्षा के लिए किया जाता है।
महाराष्ट्र के नीलोखेडी का पूजम गांव महाभारत की यादें समेटे हुए है। यह वही ऐतिहासिक गांव है जहां महाभारत युद्ध से पहले पांडवों ने कौरवों पर विजय हासिल करने के लिए शस्त्रों की पूजा की थी। इसी पूजा से ही इस स्थान का नामकरण पूजम हुआ।
महाभारत काल की स्मृतियों से जुडा होने के कारण गांव के मंदिर में स्थापित शिवलिंग के प्रति लोगों की गहरी आस्था है। यहां पर प्राचीन तालाब ने आधुनिक रूप ले लिया है। ग्रामीणों का कहना है कि इस गांव की धरती पर कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों का युद्ध शुरू होने से पहले पांडवों ने शस्त्रों की पूजा की थी।
शस्त्र पूजन की परंपरा का आयोजन रियासतों में आज भी बहुत धूमधाम के साथ होता है। राजा विक्रमादित्य ने दशहरा के दिन देवी हरसिद्धि की आराधना की थी। क्षत्रपति शिवाजी ने भी इसी दिन देवी दुर्गा को प्रसन्न करके भवानी तलवार प्राप्त की थी और एक स्वतंत्र हिन्दू राज्य की स्थापना की थी। राजपूतों में सीमोल्लंघन प्रथा प्रचलित थी। हमारे देश में सेना, पुलिस और अन्य सुरक्षाबल जिनके पास भी हथियार होते हैं, उनकी विधि-विधान से पूजा की जाती है।
भारतीय सेना में कार्यरत राजपूत, जाट, मराठा, कुमाऊं और गोरखा रेजिमेंट्स में आज भी शस्त्र पूजन धूमधाम से किया जाता है।
* दशहरा पर्व के अवसर पर अपने शस्त्र को पूजने से पहले सावधानी बरतना न भूलें। हथियार के प्रति जरा-सी लापरवाही बड़ी भूल साबित हो सकती है।
* घर में रखे अस्त्र-शस्त्र को अपने बच्चों एवं नाबालिगों की पहुंच से दूर रखें। घर में हथियार तक पहुंच किसी भी स्थिति में न हो।
* हथियार को खिलौना समझने की भूल करने वालों के दुर्घटना के शिकार होने के कई मामले सामने आ चुके हैं।
* सबसे अहम यही है कि पूजा के दौरान बच्चों को हथियार न छूने दें और किसी भी तरह का प्रोत्साहन बच्चों को न मिले।
हथियार खतरनाक होते हैं इसलिए इनकी साफ-सफाई में बेहद सावधानी की ज़रूरत होती है। 12 बोर और पिस्टल में सतर्कता रखनी पड़ती है। अपने-अपने घरों में जो भी हथियार साफ करें, बिलकुल संभलकर करें।
हमारे सभी पाठको को विजया दशमी बहुत बहुत की शुभ कामनाएं